गुरुवार, 23 जुलाई 2009

आंखों की साफ आवाज़ें

पिछले दिनों मैंने फेस बुक पर कुछ पंक्तियां लिखी थी। बहुत दिनों बाद उन्ही पंक्तियों के सहारे नई शुरुआत कर रहा हूं, इस वादे के साथ कि अब बराबर कुछ न कुछ लिखूंगा। अपनी ही तलाश में भटकते हुए कुछ ढूंढ के लाया हूं-

आज कुछ कहने का मन नहीं हो रहा। ऐसा जब-जब होता है तो लगता है अपनी ही ऊंचाइयों से फिसल कर धड़ाम से नीचे आ गया और अपने लिए धरती ढूढ़ रहा हूं। आसान नहीं होता अपनी खामोशियों की ऊंची दीवारों में कैद हो जाना। कुछ बोलूं न बोलूं आंखों से साफ आवाज़ निकलती है। कुछ आवाज़ों के साथ-

मेरा अनलिमिटेड स्टॉक
कुछ लोगों ने मुसे नफरत देने की कोशिश की। उन्हे 30 प्रतिशत अतिरिक्त प्यार मिला। कुछ लोगों ने मुझे प्यार दिया। उन्हे 100 प्रतिशत अतिरिक्त प्यार मिला। नफरत करने वालों ने अपनी चीज वापस मांगी। कहां से देता मैं.. मेरे स्टॉक में तो सिर्फ प्यार भरा है। इस तरह मेरा स्वभाव मेरी समझदारी से हमेशा जीतता रहा। एक ही एक्सचेंज आफर है मेरे पास- प्यार के बदले प्यार..नफरत के बदले भी प्यार। सौदा मंजूर है तो ठीक वरना दूसरी दूकान देखो...
मेरी प्रार्थनाएं-
आंखें जब साफ आवाज़ में बात करती है तब आदमी कितना मासूम दिखता है। कुछ आंखों की साफ आवाज़ों से मैंने अपनी दोनों मुट्ठियां भरी। पहली खोली तो एक चेहरा निकला। दूसरी खोली तो रौनक। दोनों हथलियों को मिला कर, इसे प्रार्थना का नाम दिया... और प्रार्थनाओ ने मुझे रौनक भरे चेहरों से सजी इक मासूम दुनिया दी, इसीलिए ज्यादा समझदार नहीं होना चाहता... ज्यादा समझदारी मासूमियत को निगल जाती है...
ताजमहल देख कर लौटने के बाद-
मुहब्बत की जुबां सदियों तक बात करती है...पिछली सदी की खुबसूरत याद को दोनों हथेली पर रख कर अपनी आंखों में नूर भर लेने की ख्वाहिश बचपन से थी, इसीलिए पिछले रविवार ताजमहल देखने गया। सोचा था शाहजहां के इतिहास से थोड़ी रौनक अपनी आंखों के लिए चुरा लूंगा...लेकिन सुंदर नक्काशियों से निकले अजनबी हाथों ने मुझे चोरी करते पकड़ लिया। कहने लगे यह हमारी मुहब्बत है, किसी बादशाह की शान नहीं कि सदियां बदलते ही तुम लपक लोगे..
कंधों का इस्तेमाल
कुछ लोग कंधों का इस्तेमाल सीढियों की तरह करते हैं, यह जानते हुए कि कंधों पर हाथ रखा जाना चाहिए, पैर नहीं। एक दिन वही मजबूत कंधा जब झुक जाता है तो उंचाईयों से लुढ़कना समझ में आता है। दावे से कह सकता हूं दावे से कह सकता हूं कि कंधे जब अवसरवाद की भेंट चढ़ते हैं तो सीढियां बन जाते है और जब उमर भर एक- दूसरे का साथ देते हैं तो एक और एक ग्यारह होता है। आपको मज़ा आएगा, किसी झुके हुए कंधे पर हाथ रखकर यह गणित समझने की कोशिश करते हुए..
लोहा गायब... केवल धार
कुछ लोगों ने अपनी धार तेज करना शुरु किया। इतनी धार लगाई कि बस धार ही रह गई, लोहा खत्म हो...अब अपनी केवल धार लेकर एक-दूसरे से ही लोहा ले रहे हैं...
अपने एक खास दोस्त के लिए
यह आवाज जो तुम्हे साफ-साफ सुनाई दे रही है, इसे तुम्हारे शोर पर अपनी खामोशियों को रगड़-रगड़कर मैंने पैदा किया है। अब मैं इसे पाल-पोसकर बड़ा करना चाहता हूँ...क्या तुम मेरा साथ दोगे...शायद नहीं क्योंकि इसी शोर ने तुम्हे पैदा किया है...लेकिन याद रखना दोस्त खामोशी भी कभी- कभी शोर को निगल जाती है...जिंदगी कम से कम चूकने का मौका सबको देती है..
मदर्स डे पर
अपने होने के आगे फुल स्टॉप, कॉमा या प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने से पहले तुम्हारी याद आती है मां... सोचता हूं कि मेरा होना तुम्हारी आंखों के किस सपने की हकीकत है...9 महीने में सोचा गया कौन सा वाक्य हूं मैं... मां कभी मेरी कविता में आओ...शायद वही भूल आई हो अपना आंचल, जिससे अकसर लिपटा रहता हूं...सच कहूं आज मदर्स डे नहीं भी होता तो तुम्हारी बहुत याद आती..
और अंत में
मुझे तलाश है उन शब्दों की जो दिमाग में एक नई सुबह खोल दे और दिल को एक खुबसूरत शाम दे, जिससे मैं अकेले में बात कर सकूं...एक गहरा कुआं खोदने की ताकत रखने वाले शब्दों की खोज में हूं क्योंकि बोर हो गया हूं सूखती हुई आंखों और सख्त हो चुके दिलों से..

4 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

आपको पढना अच्‍छा लगा .. शुभकामनाएं !!

Udan Tashtari ने कहा…

सही है..यहाँ नियमित लिखो!!

Nirmal Vaid ने कहा…

Achha hai Pankaj, ab tum vishay chun kar likhna shru karo..... One line story, kahani likho..... aur han Geet be likhna shru karo.... Bollywood is calling new talent... cheers.............

बेनामी ने कहा…

पंकज
तुम्‍हारे शब्‍द शब्‍दकोषों के मृत शब्‍द नहीं, सांस लेते, धड़कते, बोलते बतियाते और वाठकों से गु।्तगू करते शब्‍द हैं। इन्‍हें बचाये रखना और कभी मुरझाने मत देना
सूरज