- पंकज नारायण
हौसला समेट लिया है मैंने फिर से कि 'आज का कल', 'कल के आज' से बेहतर हो।
साल का दूसरा दिन, साल के आख़िरी दिन से पीछे और साल के पहले दिन से आगे निकल जाता है। आज का दिन मुझे ऐसे छोड़ कर गया, जैसे मां-बाप अपने अपने छोटे बच्चे को घर की नौकरानी के पास रोता हुआ छोड़ कर चले जाते हैं। समय के साथ रहना भूल सा गया हूं और नये साल के पहले दिन से कोशिश है समय के साथ चलूं।समय के साथ चलने के मुहावरे सुन कर जब बोर होने लगा, तब समय ने ही खड़ा होना सिखाया। खड़ा होने पर जब कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, तब पांवों में आंखों का जन्म हुआ और धरती ने चलना सिखाया। चलते हुए जब समझा कि मंज़िल दूर है, तब धरती को दूसरे छोर पर छूते आसमान ने उड़ना सिखाया।
हौसला समेट लिया है मैंने फिर से कि 'आज का कल', 'कल के आज' से बेहतर हो।
एक नए सफर के लिए.. एक नए कल के लिए..आज बस इतना ही।
2 टिप्पणियां:
समय समझना कठिन है माना,
सीखें कुछ गतिमय हो जाना।
सही बात प्रवीण जी। शुक्रिया ब्लॉग पर आने के लिए।
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